Akash

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Monday, April 25, 2011

आगाज और अंजाम ! - आकाश सिंह

मेरे पैदा होने की खबर
जब बाप की कानो में पड़ी
तो उनका चेहरा उतर गया
भविष्य का सपना बिखर गया
क्योंकि मैं लड़की थी
घर का माहौल यूं हो गया
जैसे पैदाइश नहीं
कोई मौत हुई है
माँ को भी
लाल के आने का पूरा भरोसा था
मैं लाल नहीं, लाली थी
इशलिये माँ ने भी जी भर कर कोसा था
फिर मुझे बेमन से पाला पोसा गया
मेरे सामने
भाई का जूठन परोसा गया
मैं अपने ही घर में
अजनबी बनकर जीती रही
फिर भी माँ-बाप से मुझे
कोई शिकायत न थी
क्योंकि मैं जानती हूँ
औरत की जिंदगी,
मर्द के आज्ञा पालन में ही कट जाती है |

Tuesday, April 12, 2011

का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

ये कविता भोजपुरी में खासकर बिहार और झारखण्ड में हो रही परीक्छा को लेकर लिखी गई है |
इन दिनों पुरे देश में सरकारी स्कूल और कालेजों की परीक्छा जोर शोर से हो रही है मेरे मन में एक विचार आया जो मैंने लिख दिया अब आप भी अपना बहुमूल्य विचार दे ही दीजिये| 
जरा सोंचिये पीछे की खिड़की के बारे में...

का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?
एम. ए. बी. ए. पास कइलन तनको ना बुझाता
का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

चीट पर फिट  होके सीट पर लिखाता
मैट्रिक, इंटर क्लास के परीक्छा दियाता
एगो जालन लिखे दुगो लागल जालन पीछे
का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

घुश चपरासी से पुलिस के पैसा दियाता
एकरा पर सरकार के तनको न बुझाता
का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

टीचर ट्रेनिंग के लोग मास्टर कहता
तेरह दिन में तिन दिन पढावे लोगन जाता
का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

रोज-रोज नया-नया स्कूल, कॉलेज खुलल जाता
एकरा में पढावे वाला भूखे मरल जाता
का कहीं.. का कहीं देशवा के हाल भईया कहलो ना जाता ?

Thursday, April 7, 2011

भ्रस्टाचार के खिलाफ महायुद्ध .... - आकाश सिंह

                                   जैसे बीज में छुपा है वृछ, चिंगारी में है आग |

भारत माँ की इज्जत आपके हाथ, जाग सके तो जाग, जाग सके तो जाग |

प्रिय साथियों
आप सभी को आकाश कुमार का प्यार भरा नमस्कार |
आज कहते हुए मुझे शर्म आ रही है की जिस देश की पहचान सादगी सचाई और सम्मान के लिए जानी जाती है वहीँ आज चोरी फरेब, घोटाला  और अपसरशाही के लिए मशहूर होता जा रहा है रोज रोज अपराधिक तत्व के मामले और नए नए घोटाले उजागर हो रहे हैं| क्या हम उसी देश में हैं जिस देश को लोग माँ कहकर पुकारते हैं क्या हम उसी देश में हैं जहाँ नदियों, पहाड़ो और पशुओं को पूजा जाता है | कहने को तो हम भारत माता कहते हैं पर क्या हम उस माँ का सपूत कहलाने लायक हैं जो वर्षों से इसकी लुटती हुई इज्जत को नजरंदाज करते आ रहे हैं, जी नही आज मैं उस सपूत को सलाम करता हूँ जिन्होंने अपसरशाही, गुंडागर्दी और भ्रस्टाचार के खिलाफ खुलेआम आन्दोलन कर रहे हैं |  अब कितनी जुल्म होगी भारत माता पर जरा सोचिये जन्म देनेवाली माँ के बारे में कोई अभद्र बोले तो जान लेने और देने को तैयार हो जाते हैं| पर शायद आप भूल रहे हैं की भारत माता ने न जाने कितने सपूतों को जन्म दिया है | इसकी इज्जत और आबरू को पहले वो दुरंग निति वाले भडुवे अंगरेजों ने लुटा फिर आज के घरेलु शैतान अपनी ही माँ का इज्जत तार-तार कर रहे हैं साथियों कहने को तो हम कहते हैं की हम १९४७ से आजाद हैं पर क्या वाकई में हम आजाद हैं नहीं हमे १९४७ में सिर्फ राजनैतिक आजदी मिली आर्थिक आजादी तो अभी बाकि है | अब वो समय आ गया है अपनी माँ का कर्ज अदा करने का, आज देश के हर घर से एक अन्ना हजारे होने चाहिए तभी हम भारत माँ की सम्मान को बचा पाएंगे | माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है|
आओ साथिओं हम मिलकर भ्रस्टाचार के खिलाफ ये कसम खाएं की

देश को भ्रस्ट नेताओं से मुक्त कराना है, अपसरशाही को मिटाना है  
लूटे हुए पैसे को वापस लाकर, लुटेरों को जेल भेजवाना है |
और आर्थिक आजादी लाना है, फिर से नया भारत बनाना है |
                                                         
                               जय हिंद | जय भारत |

Tuesday, April 5, 2011

नेताओं की करतूत कितना सही कितना गलत !!! - आकाश सिंह

सिर्फ क्रिकेट ही  क्यों ? दिल से पढ़िए और जरा सोचिये देश के अन्य खिलाडियों के बारे में|
२ अप्रैल २०११ रात्रि के करीब १०:४० बजे महेंद्र सिंह धोनी ने जब कुलशेखरा के गेंद पर विजयी छक्का लगाया तभी पुरे भारत में एक बार फिर से दिवाली की लहर आ गई फिर
एक-दुसरे को बधाई देने का दौर चला| मैंने भी अपनी ख़ुशी का इजहार किया और शायद आप भी |
इंडिया ने विश्व कप पर अपना कब्ज़ा जमा ही लिया| सभी भारतीय उतशाह से लबरेज होकर अपने अपने अंदाज में खुशियाँ मना रहे हैं|
आख़िरकार हिंदुस्तान का तिरंगा एक बार फिर पूरी दुनिया में सबसे उपर लहरा रहा है| आखिर लहराएगी भी क्यों नही? १ अरब २१ करोड़ भारतीय का जो साथ रहा है| पर इन सब के बिच कुछ सवाल हैं जो बार बार मेरे दिल को झकझोर दे रही है बात सिर्फ सवाल का नही है ये तो एक माध्यम है भारतीय खेल और खिलाडियों के साथ हो रही बेइजती का सच आपके सामने लाने का पिछले कुछ दिनों से सुर्खियाँ बटोर रही किंगफिशर की  स्टार प्रचारक पूनम पांडे की बात कौन करेगा उसने तो साबित कर दिया की किंगफिशर में कितनी नशा है| पर मेरे समझ में नही आ रहा की देश के नेताओं को किस नशा का खुमार है की सब के सब पगला गएँ हैं| जी मैं बात कर रहा हूँ पगलाए हुए उन सभी नेतावों के बारे में, वर्ल्ड कप पे कब्ज़ा करने के बाद क्रिकेट टीम को मनमाना ढंग से पैसे लुटा रहे हैं जहाँ एक तरफ धोनी के धुरंधरों के माध्यम से खेल जगत का जय जयकार हो रहा है वहीँ कुछ चुनेंदे नेतावों की इस करतूतों से देश शर्मशार हो रहा है और होगी भी कैसे नही जरा सोचिये क्या १ अरब २१ करोड़ आबादी वाला देश भारत में और कोई खेल नही खेला जाता? क्या और भी खिलाडी नही है जो देश का नाम रौशन कर रहे हैं? क्या उस समय ये लोग सोये हुए होते हैं जब देश के अन्य खिलाडियों को स्पोर्ट किट की जरुरत होती है? क्या देश में और भी खिलाडी नही हैं जो देश का नाम रौशन कर रहे हैं? क्या उस समय नेताओं को सुध बुध नही होती है जब ओलम्पिक और एशियाड में खिलाडी मेडल जीतकर लाते हैं| मेरे समझ से ये सब एक पब्लिसिटी स्टंट है अभी देखिये एक ने तो उतराखंड में धोनी के नाम का स्टेडियम भी बनाने का उदघोशना भी कर दिया है भाई शाहब करेंगे भी क्यों नही स्टेडियम बनेगा तभी न फिर से कुछ पैसा लुटने का बंदोबस्त होगा|
क्या नेताओं का खिलाडियों के साथ ये एकलौता ब्यवहार सही है? क्या अन्य खिलाडियों के मोरल पे ये प्रतिघात नही है?
आप अपनी राय से मुझे अवगत जरुर कराएँ |
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मंगलवार पांच अप्रैल से आयोजित होने वाले ऑल इंडिया नेहरू मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट को इसलिए स्थगित कर
दिया गया क्योंकि इसे आयोजित करने के लिए पैसों का इंतज़ाम नहीं हो पाया|
जिस भारत में ध्यानचंद जैसे हॉकी खिलाड़ी पैदा हुए हों वहां पैसों की कमी की वजह से हॉकी टूर्नामेंट स्थगित करना पड़े, बहुत अफ़सोस की बात है. इस टूर्नामेंट के आयोजन में 15 लाख रूपए का ख़र्च था जबकि राज्य
सरकार की तरफ़ से महज़ तीन लाख रूपए और खेल विभाग की तरफ़ से 75 हज़ार रूपए मिले थे|