प्रिय साथियों मैं पिछले कुछ दिनों से ब्लोगिंग की दुनिया से बेखबर था इसके लिए आप सभी से माफ़ी चाहता हूँ| एक नई प्रस्तुति के साथ आकाश कुमार का प्यार भरा नमस्कार स्वीकार करें|
बेटी वाले कैसे ख़रीदे भाव बहुत है बढे हुए ?
दस-बीस, साठ-सत्तर से लाखों पर आ पहुंचे हैं |
हाय कितने बेबस हैं वे जो खुद को बेच रहे हैं |
शायद उपर उठने का प्रयास कर रहे हैं |
तभी तो दुल्हन के रूप में खजाने की चाभी ढूंढ रहे हैं |
नहीं अब बिकेंगे नहीं अब खरीदेंगे...
हम पशु नही इन्सान हैं |
सवाल ?
दौलत के बाजार में नीलाम हुए लड़के,बेटी वाले कैसे ख़रीदे भाव बहुत है बढे हुए ?
दस-बीस, साठ-सत्तर से लाखों पर आ पहुंचे हैं |
हाय कितने बेबस हैं वे जो खुद को बेच रहे हैं |
शायद उपर उठने का प्रयास कर रहे हैं |
तभी तो दुल्हन के रूप में खजाने की चाभी ढूंढ रहे हैं |
नहीं अब बिकेंगे नहीं अब खरीदेंगे...
हम पशु नही इन्सान हैं |
आकाश जी बहुत दिन बाद आपकी कोई पोस्ट पढने को मिली है बहुत अच्छा लग रहा है.आपकी मम्मी कैसी है?आप का सवाल अच्छा है किन्तु इसका कोई फर्क आज के दहेज़ के बाज़ार में खड़े दुल्हों पर नहीं पड़ता है.
ReplyDeleteतभी तो दुल्हन के रूप में खजाने की चाभी ढूंढ रहे हैं |
ReplyDeleteSateek sachchi abhivykti....
आकाश भाई बहुत दिन बाद आपकी नई पोस्ट पढने को मिली है
ReplyDeleteतभी तो दुल्हन के रूप में खजाने की चाभी ढूंढ रहे हैं |
नहीं अब बिकेंगे नहीं अब खरीदेंगे...
बिकुल शै कहा आपने
अब दुल्हे भी बिकते है
दुल्हन अब तिजोरी कि चाबी हो गई है
ReplyDeleteकाश हर लड़का आपकी तरह सोच पाता। हम इंसान हैं , पशु नहीं । बिकते तो पशु है और समान हैं।
ReplyDeletebandhu,
ReplyDeletebahut sahi kaha hai
ye purusho ki hi jimmedari hai ki is baat ko samjhen...
esi hi ek rachna mere paas bhi hai lekin abhi blog par post 10-15 din baad karunga...
likhna jaari rakhen...
काश ऐसी ही सबकी सोच बन सके ...
ReplyDeleteबहुत सही
ReplyDelete--------
आपकी पोस्ट की हलचल यहाँ भी है -
नयी-पुरानी हलचल
@ शालिनी कौशिक जी
ReplyDelete--- असर जरूर पड़ेगा...
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा जी
--- उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.....
@ संजय भास्कर जी
--- गंभीर मसला है.....
@ Devendra K Sharma ji
--- जारी रहेगा.....
@ संगीता स्वरुप जी
--- बूंद बूंद कर तलब भर ही जायेगा.....
इंसान पर लगाम लगनी चाहिए ! बहुत सुन्दर विचार !
ReplyDeleteआप जैसे युवा जब इस सोच को व्यापक करेंगे तो निश्चय ही दहेज़ रुपी दानव का अंत होगा...सच कहा आपने हम पशु नहीं इंसान हैं...मेरी बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
akash i am sure that your would wife is the luckiest person of the world because your thinking is very good .how is your mother now ?best of luck .
ReplyDeleteबात तो सही है..पर इस विचार के साथ ये कटु सत्य जुड़ा है की वैचारिक समर्थन से हटकर निजी जीवन में उतरना कितना संभव हो प् रहा है वर्तमान परिवेश में??
ReplyDeleteI repeat
ReplyDeleteआप जैसे युवा जब इस सोच को व्यापक करेंगे तो निश्चय ही दहेज़ रुपी दानव का अंत होगा...सच कहा आपने हम पशु नहीं इंसान हैं...मेरी बधाई स्वीकारें.
जी खुद के दृढ़ निश्चय से ही कुछ हो सकता है...
ReplyDeleteआज की पढ़ी लिखी सभ्यता को इस विषय में भी ज्ञान देना अब भी बाकी है...
aakash ji ye aapki soch hai kintu aap un ladkon aur unke mata pita ki soch ka kya karoge jo apne par kiye gaye sare jeevan bhar ke kharch ko ladki vale se vasoolna chahte hain aur aise log hamare samaj me bahut hain .
ReplyDeletenice way of thinking buddy
ReplyDeletetumhare jaise sabi sochne lage tho acha hota par nahi na dhaej lete hain jaada phir thode log tho mar jaathe hain unke haatho
aur yeh ladaka ladkai ka differetiaiton bhi jaana hain kaha kaha nahi hain aaj kal ke ladakiya
प्रिय आकाश जी मैंने आपका रचना पढ़ा पढ़ कर मेरे दिल में ख्याल आया की आज के दुनिया में भी कुछ लोग बचे है जो मेरी तरह सोचते है आपका बिचार अन्ना ही तरह देश में क्रांति ला सकती है आप अपने ब्लॉग पर हमेशा लिखते रहियेगा जिस्शे देश में दहेज के प्रति ख्याल ख़त्म हो जाये
ReplyDeleteजये हिंद