गम और खुशी जिंदगी के ऐसे दो धागे हैं जिनके ताने बाने के बगैर जिंदगी की चादर नहीं बुनी जा सकती |
फूलों से क्यों मोहब्बत है तितलियाँ समझती हैं |
माँ के दिल में क्या गम है बेटियां समझती हैं ||
रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||
तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को |
दर्द किसको कहते हैं डालियाँ समझती हैं ||
मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||
फूलों से क्यों मोहब्बत है तितलियाँ समझती हैं |
माँ के दिल में क्या गम है बेटियां समझती हैं ||
रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||
तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को |
दर्द किसको कहते हैं डालियाँ समझती हैं ||
मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||
BAHUT KHOOBSURAT RACHNA...BADHAI SWIIKAREN
ReplyDeleteआपने जिन्दगी की उस दर्दनाक पल से हम लोगों को अवगत कराया है जिससे पूरी दुनिया अंजान थी आपके इस काबिले तारीफ़ रचना के लिए हम तमाम पाठक आपका तहे दिल से अभिवादन करते हैं .
ReplyDelete♥
ReplyDeleteतोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को
दर्द किसको कहते हैं डालियां समझती हैं
ख़ूब !
क्या बात है !
आपकी रचना पढ़ते हुए याद आ गया …
कौन याद करता है , हिचकियां समझती हैं
:)
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा एवं विजयदशमी की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत संवेदनशील लेखनी है आपकी.सामाजिक सरोकारों को बेहतरीन भाव में उकेरा है.
ReplyDeleteमरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
ReplyDeleteकिस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||
Khoob... Gahara arth liye Panktiyan...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसच बहुत ही प्यार और सच लिखा है आपने बहुत दीनों बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।......आभार
ReplyDeleteरुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||
तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को |
दर्द किसको कहते हैं डालियाँ समझती हैं ||
मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||
वाह वाह वाह .... बहुत खूब आकाश सिंग जी मज़ा आ गया आपकी यह पोस्ट पढ़ कर समय मिले तो आयेगा मेरी भी पोस्ट पर आपका स्वागता है :)
दो जवां दिलों का ग़म दूरियां समझती हैं
ReplyDeleteकौन याद करता है हिचकियां समझती हैं
यूं तो सैर-ए-गुलशन को कितने लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा डालियां समझती हैं
इस ग़ज़ल की बरबस ही याद आगई इस रचना को पढ़कर... एक उम्दा रचना के लिे बधाई
marmik panktiya........
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteAakash ji , rachna bahut achchhi lagi ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
ReplyDeleteबधाई ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/
मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
ReplyDeleteकिस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं || Bejod rachna
फूलों से क्यों मोहब्बत है तितलियाँ समझती हैं |
ReplyDeleteमाँ के दिल में क्या गम है बेटियां समझती हैं ||
आकाश जी! बिलकुल सही कहा आपने!
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteदेरी से पहुच पाया हूँ
रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
ReplyDeleteदुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||
waah
अच्छी जानकारी ......
ReplyDeleteयह मेरे घर,गाँव की दिवाली हे |
ek mashahoor ghazal ki zameen likhi gayee yah rachana achchhee lagee. isee tarah gatimaan rahe, likhate rahe, shubhkamanaye..
ReplyDeleteकितना दर्द समेचे है आपकी ये दुल्हन ।
ReplyDeleteवाह |
ReplyDeleteबहुत खूब ||
सचमुच! बहुत सुन्दर वाह
ReplyDeletelast lines are appealing
ReplyDeleteसुन्दर रचना, मुग्ध करते भाव, सादर.
ReplyDeleteपधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.