मेरे गुरु (संजय भास्कर जी ) |
मैंने जो कुछ भी लिखा पुरे दिल की गहराइयों से उसके लिए संजय भास्कर जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ जो समय समय पे मेरा गुरु बनकर मार्ग प्रसस्त करते आ रहे हैं |
प्रिय संजय भास्कर जी आपकी बातों में आकर मैंने अपनी जज्बातों को लिख दिया | अब आगे देखते है -----
प्यारे ब्लोग्वासी अगर आपको पसंद आये तो धन्यवाद नहीं आये तो भी धन्यवाद | - ऐसा मेरे गुरु (संजय भास्कर जी ) ने सिखाया |
न जाने कौन सी बात पे वो हो गई खफा |
क्यों बन गया मैं उनके नज़रों में बेवफा ||
अक्सर मैं रोता हूँ याद करके उनकी बातों को |
कैसे मिटा दूं अपने दिल से दी हुई उनकी सौगातों को ||
चुप्पी हुई क़दमों से आना धीरे से मेरी कानों में फुसफुसाना |
अकेले में देखकर मुस्कुराना सहेलियों के बिच शर्मना ||
आज भी भुला नहीं पाता हूँ उन अकेली मुलाकातों को |
कैसे मिटा दूं अपने दिल से दी हुई उनकी सौगातों को ||
समय बदला, युग बदला, बदल गया जमाना |
इस प्यार को भुलाने का क्या क्या करूँ बहाना ||
दिन कट जाती है पर सो नहीं पाता रातों को |
कैसे मिटा दूं अपने दिल से दी हुई उनकी सौगातों को ||
छुपा कर रखता था उनकी तस्वीर किताबों में |
दिल की बात दिल में रखकर खोया उनकी यादों में ||
जब मैं मिलता उनसे चूमता प्यारी हाथों को |
कैसे मिटा दूं अपने दिल से दी हुई उनकी सौगातों को ||
तू सावन की रानी मैं भादो का राजकुमार |
प्यार का गाथा कोई न जाने इसकी लीला अपरम्पार ||
तू सावन में जन्मी मैं कृष्ण पक्छ (अस्ठ्मी) की रातों को |
कैसे मिटा दूं अपने दिल से दी हुई उनकी सौगातों को ||