Akash

Akash

इस ब्लॉग की

कृप्या इस ब्लॉग की प्रविष्टियों को महसूस करें तथा अपना मंतब्य जरूर लिखें |

Monday, September 26, 2011

दुल्हन........ - आकाश सिंह

गम और खुशी जिंदगी के ऐसे दो धागे हैं जिनके ताने बाने के बगैर जिंदगी की चादर नहीं बुनी जा सकती |
 
फूलों से क्यों मोहब्बत है तितलियाँ समझती हैं |
        माँ के दिल में क्या गम है बेटियां समझती हैं ||


रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
        दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||


तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को |
        दर्द किसको कहते हैं डालियाँ  समझती हैं ||


मरघटों में आती  है रोज एक नई दुल्हन |
        किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||

23 comments:

  1. आपने जिन्दगी की उस दर्दनाक पल से हम लोगों को अवगत कराया है जिससे पूरी दुनिया अंजान थी आपके इस काबिले तारीफ़ रचना के लिए हम तमाम पाठक आपका तहे दिल से अभिवादन करते हैं .

    ReplyDelete





  2. तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को
    दर्द किसको कहते हैं डालियां समझती हैं


    ख़ूब !
    क्या बात है !

    आपकी रचना पढ़ते हुए याद आ गया …
    कौन याद करता है , हिचकियां समझती हैं
    :)

    नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा एवं विजयदशमी की बधाई और शुभकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  3. बहुत संवेदनशील लेखनी है आपकी.सामाजिक सरोकारों को बेहतरीन भाव में उकेरा है.

    ReplyDelete
  4. मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
    किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||

    Khoob... Gahara arth liye Panktiyan...

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. सच बहुत ही प्यार और सच लिखा है आपने बहुत दीनों बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।......आभार

    रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
    दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||

    तोड़कर मसलते हैं जो नर्म नर्म फूलों को |
    दर्द किसको कहते हैं डालियाँ समझती हैं ||

    मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
    किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं ||

    वाह वाह वाह .... बहुत खूब आकाश सिंग जी मज़ा आ गया आपकी यह पोस्ट पढ़ कर समय मिले तो आयेगा मेरी भी पोस्ट पर आपका स्वागता है :)

    ReplyDelete
  7. दो जवां दिलों का ग़म दूरियां समझती हैं
    कौन याद करता है हिचकियां समझती हैं

    यूं तो सैर-ए-गुलशन को कितने लोग आते हैं
    फूल कौन तोड़ेगा डालियां समझती हैं

    इस ग़ज़ल की बरबस ही याद आगई इस रचना को पढ़कर... एक उम्दा रचना के लिे बधाई

    ReplyDelete
  8. बहुत बढ़िया |
    बधाई ||
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

    ReplyDelete
  9. मरघटों में आती है रोज एक नई दुल्हन |
    किस तरह जली होगी अर्थियां समझती हैं || Bejod rachna

    ReplyDelete
  10. फूलों से क्यों मोहब्बत है तितलियाँ समझती हैं |
    माँ के दिल में क्या गम है बेटियां समझती हैं ||
    आकाश जी! बिलकुल सही कहा आपने!
    बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !

    ReplyDelete
  11. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    देरी से पहुच पाया हूँ

    ReplyDelete
  12. रुखसती की तन्हाई गूंजती है आँगन में |
    दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती हैं ||
    waah

    ReplyDelete
  13. ek mashahoor ghazal ki zameen likhi gayee yah rachana achchhee lagee. isee tarah gatimaan rahe, likhate rahe, shubhkamanaye..

    ReplyDelete
  14. कितना दर्द समेचे है आपकी ये दुल्हन ।

    ReplyDelete
  15. वाह |
    बहुत खूब ||

    ReplyDelete
  16. सचमुच! बहुत सुन्दर वाह

    ReplyDelete
  17. सुन्दर रचना, मुग्ध करते भाव, सादर.

    पधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.

    ReplyDelete

कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें| आपकी टिपण्णी से मुझे साहश और उत्साह मिलता है|